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Tuesday, October 2, 2007

वादा

किसके दिल में क्‍या है, ये अंदाज़ा करते हैं
माल दिखे तो फौरन आधा-आधा करते हैं
कोई काम नहीं करते हैं, ये खद्दर वाले
केवल भाषण देते हैं, औ वादा करते हैं

अपने दामन को तार-तार कर लिया मैंने
प्‍यार अहसास था अख़बार कर लिया मैंने
जिसने दुनिया में कभी कोई सच नहीं बोला
उसके वादों पे ऐतबार कर लिया मैंने


यहां लोग मरकर जिए जा रहे हैं
बिखरकर लहू को सिए जा रहे हैं
खुदा जाने कब ये गरीबी मिटेगी
वो वादे पे वादे किए जा रहे हैं

ग़मों में मुस्‍कराता जा रहा हूं
मैं तन्‍हा गीत गाता जा रहा हूं
किसी से कह दिया था ख़ुश रहूंगा
वही वादा निभाता जा रहा हूं

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Thursday, September 27, 2007

मोहब्‍बत

कभी हमको हंसाती है, कभी हमको रूलाती है
जिन्‍हें जीना नहीं आता, उन्‍हें जीना सिखाती है,
खुदा के नाम पर लिक्‍खी, ये दीवानों की पाती है
मोहब्‍बत की नहीं जाती, मोहब्‍बत खुद हो जाती है ।

खुदा के सामने दिल से इबादत कौन करता है
तिरंगा हाथ में लेकर शहादत कौन करता है
ये कसमें और वादे चार दिन में टूट जाते हैं
वो लैला और मजनूं सी मोहब्‍बत कौन करता है ।

जीतने में क्‍या मिलेगा, जो मजा है हार में
जिन्‍दगी का फलसफा है, प्‍यार के व्‍यापार में
हम तो तन्‍हा थे, हमारा नाम लेवा भी न था
इस मोहब्‍बत से हुआ चर्चा सरे बाजार में ।

सदा मिलने की चाहत की, जुदा होना नहीं मांगा
हमें इंसान प्‍यारे हैं, खुदा होना नहीं मांगा
हमेशा मंदिरो मस्जिद में, मांगा है मोहब्‍बत को
कभी चांदी नही मांगी, कभी सोना नहीं मांगा ।

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Monday, September 17, 2007

सरकार

विकास योजना तैयार किए बैठे हैं
सब‍की उम्‍मीद तार-तार किए बैठे हैं
हमने सरकारी महक़मों में जाके देखा है
जुगुनू सूरज को गिरफ्तार किए बैठे हैं


भाव सेवा का दिखाने में लगे हैं प्‍यारे
बिना पानी के नहाने में लगे हैं प्‍यारे
जिनसे उम्‍मीद थी खुशियों की सुबह लाएंगे
अपनी सरकार बचाने में लगे हैं प्‍यारे

लगता है घर के आंगन को दीवार खा गई
दरिया चढा तो नाव को पतवार खा गई
सारी विकास योजनाएं फाइलों में हैं
जनता के सारे ख्‍वाब तो सरकार खा गई

ख़ुशबू की खिलाफत का फैसला तो देखिए
आएगा किसी रोज़, जलजला तो देखिए
सूरज को भी गुमराह कर रहे हैं दोस्‍तो
सरकारी चराग़ों का हौसला तो देखिए

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Tuesday, September 11, 2007

नदी

हर इक मूरत ज़रूरत भर का, पत्‍थर ढूंढ लेती है
कि जैसे नींद अपने आप, बिस्‍तर ढूंढ लेती है
अगर हो हौसला दिल में, तो मंजिल मिल ही जाती है
नदी ख़ुद अपने क़दमों से, समन्‍दर ढूंढ लेती है


तू नदी है तो अलग अपना, रास्‍ता रखना
न किसी राह के, पत्‍थर से वास्‍ता रखना
पास जाएगी तो खुद, उसमें डूब जाएगी
अगर मिले भी समन्‍दर, तो फासला रखना

वो जिनके दम से जहां में, तेरी खुदाई है
उन्‍हीं लोगों के लबों से, ये सदा आई है
समन्‍दर तो बना दिए, मगर बता मौला
तूने सहरा में नदी, क्‍यूं नहीं बनाई है

हौसलों को रात दिन, दिखला रही है देखिए
परबतों से लड. रही, बल खा रही है देखिए
किसकी हिम्‍मत है जो, उसको रोक लेगा राह में
इक नदी सागर से मिलने जा रही है देखिए


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Sunday, September 9, 2007

फूल

महकती हुई जिन्‍दगी बांटते हैं
ज़माने में सबको ख़ुशी बांटते हैं
भले उनकी किस्‍मत में कांटे लिखे हों
मगर फूल हमको हंसी बांटते हैं

सोने चांदी को खजानों में रखा जाता है
बूढे लोगों को दालानों में रखा जाता है
रंग होते हैं बस, खुशबू नहीं होती जिनमें
उन्‍हीं फूलों को गुलदानों में रखा जाता है

ग़मों के बीच भी जो लोग मुस्‍कराते हैं
वही इंसानियत का हौसला बढाते हैं
लोग कांटों को तो छूने से भी कतराते हैं
फूल होते हैं तो पहलू में रखे जाते हैं

चाहत के बदले नफ़रत का, नश्‍तर लेकर बैठे हैं
पीने का पानी मांगा तो, सागर लेकर बैठे हैं
लाख भलाई कर लो, लेकिन लोग बुराई करते हैं
हमने जिनको फूल दिए, वो पत्‍थर लेकर बैठे हैं

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Wednesday, September 5, 2007

गुरू

मिट जाएगा सब अंधियारा, शिक्षा का गुणगान करो
बांटे से बढ.ता है ये तो, सदा ज्ञान का दान करो
इस धरती पर गुरूवार ही हमको, परम सत्‍य बतलाता है
अर्जुन जैसा बनना है तो, गुरूओं का सम्‍मान करो

सदा ज्ञान के पृष्‍ठ काले मिलेंगे
जेहन में मकडि.यों के जाले मिलेंगे
भटकते रहोगे अंधेरों में हरदम
गुरूवार के बिना ना उजाले मिलेंगे


ज्ञान के पांव का गोखुरू हो गये
भीड. देखी तो फ़ौरन शुरू हो गये
आ गये चैनलों पर चमकने लगे
चन्‍द चेले जुटाकर गुरू हो गये


ट्यूशन पढा-पढा के मालामाल हो गये
औ ज्ञान के सागर के सूखे ताल हो गये
किसका अंगूठा मांग लें, हैं इस फिराक़ में
पहले के गुरू अब गुरू घंटाल हो गये

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Monday, September 3, 2007

बेटियां

मेंहदी, कुमकुम, रोली का, त्‍योहार नहीं होता
रक्षाबन्‍धन के चन्‍दन का, प्‍यार नहीं होता
उसका आंगन एकदम, सूना सूना रहता है
जिसके घर में बेटी का, अवतार नहीं होता


सूने दिन भी दोस्‍तो, त्‍योहार बनते हैं
फूल भी हंसकर, गले का हार बनते हैं
टूटने लगते हैं सारे बोझ से रिश्‍ते
बेटियां होती हैं तो, परिवार बनते हैं


झूले पड.ने पर मौसम, सावन हो जाता है
एक डोर से रिश्‍ते का, बन्‍धन हो जाता है
में‍हदी के रंग, पायल, कंगन, सजते रहते हैं
बेटी हो तो आंगन वृन्‍दावन हो जाता है

जैसे संत पुरूष को पावन कुटिया देता है
गंगा जल धारण करने को लुटिया देता है
जिस पर लक्ष्‍मी, दुर्गा, सरस्‍वती की किरपा हो
उसके घर में उपर वाला बिटिया देता है

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Sunday, September 2, 2007

शायरी

शायरी

जिन्‍दगी उसकी है यारो, जिसके दिल में प्‍यार है
‍रूप उसका है कि जिसके, पास में श्रृंगार है
फूल में खुशबू ना हो तो, बोलिए किस काम का
दिल अगर बेकार है तो, शायरी बेकार है

हादसे इंसान के संग, मसखरी करने लगे
लफ़्ज़ क़ागज़ पर उतर, जादूगरी करने लगे
क़ामयाबी जिसने पाई, उनके घर तो बस गये
जिनके दिल टूटे वो आशिक़, शायरी करने लगे

हर खुशी आएगी पहले, ग़म उठाना सीख लो
रौशनी पानी है तो फिर, घर जलाना सीख लो
लोग मुझसे पूछते हैं, शायरी कैसे करूं
मैं ये कहता हूं किसी से, दिल लगाना सीख लो


मोहब्‍बत के अंजाम से डर रहे हैं
निगाहों में अपनी लहू भर रहे हैं
मेरी प्रेमिका ले उडा और कोई
इक हम हैं कि बस शायरी कर रहे हैं

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Friday, August 31, 2007

हिन्‍दी

वो देश क्‍या जिसकी, कोई ज़ुबान नहीं है
सर तो तना हुआ है, स्‍वाभिमान नहीं है
भाषा तो आप चाहे जो भी, बोल लें लेकिन
हिन्‍दी के बिना देश की, पहचान नहीं है


भाषा को धड.कनों में जिए, जा रहा हूं मैं
हर शब्‍द को अमृत सा, पिए जा रहा हूं मैं
अंग्रेज़ी जानता हूं मगर, गर्व है मुझे
हिन्‍दी में काम काज, किए जा रहा हूं मैं

सागर से मिल के भी, नदी प्‍यासी बनी रही
हंसने के बाद भी तो, उदासी बनी रही
अंग्रेजी को लोगों ने, पटरानी बना दिया
हिन्‍दी हमारे देश में, दासी बनी रही

सोच लिया है भारत मां की, बिन्‍दी को अपनाएंगे
तमिल, तेलगू, उर्दू, उडिया, सिन्‍धी को अपनाएंगे
अपने देश की सब भाषाएं, हमको जान से प्‍यारी हैं
लेकिन सबसे पहले मिलकर, हिन्‍दी को अपनाएंगे

Sunday, August 26, 2007

हंसी

आपका दर्द मिटाने का हुनर रखते हैं
जेब खाली है, खजाने का हुनर रखते हैं
अपनी आंखों में, भले आंसुओं का सागर हो
मगर जहां को हंसाने का हुनर रखते हैं

भीड. में दुनिया की पहचान बनी रहने दो
खुशी को अपने घर, मेहमान बनी रहने दो
हजार मुश्किलें आकर के, लौट जाएंगी
अपने होठों पे ये, मुस्‍कान बनी रहने दो

मां के आगे किसी मंदिर में न जाया जाए
कोई भूखा हो तो हमसे भी न खाया जाए
बस यही सोच के, सौ काम मैंने छोड. दिए
पहले रोते हुए लोगों को हंसाया जाए

किसी न किसी के गुनहगार होंगे
या फिर इस वतन के ही गद्दार होंगे
हंसी तो है यारो, इबादत खुदा की
जो हंसते नहीं हैं, वो बीमार होंगे

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Friday, August 17, 2007

तिरंगा



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पानी से भरी हर नदी, गंगा तो नहीं है
भागे जो दीप से वो, पतंगा तो नहीं है
माना हमारे देश में, झंडे तो बहुत हैं
लेकिन सभी के दिल में, तिरंगा तो नहीं है

कहते हैं रंग तिरंगे के, एकता की धारा अमर रहे
भारत माता के आंचल में, हर टंका सितारा अमर रहे
आजादी की खातिर गूंजा, बलिदानी नारा अमर रहे
मंदिर,मस्जिद,गिरिजाघर के, संगमें गुरूद्वारा अमर रहे

हाथ तो मिलते हैं, मुश्किल में ये मन मिलता है
किसी किसी को ही, सहरा में चमन मिलता है
जो अपनी जान लुटाते हैं, वतन की खातिर
उन्‍हीं लोगों को तिरंगे, का क़फ़न मिलता है


तन पर इस माटी का चंदन, मन के भीतर गंगा हो
देश भक्ति के दीप जलें, तो फिर बलिदान पतंगा हो
सौ करोड. की महाशक्ति हम, मिल करके संकल्‍प करें
सबके होठों पर जन गण मन, सबके हाथ तिरंगा हो

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Wednesday, August 15, 2007

सियासत

सियासत


सियासत दिल पे घाव देती है
बिना चावल पोलाव देती है
बाढ. से पार उतरने के लिए
हमको क़ाग़ज़ की नाव देती है



विकास योजना सरकार लिए बैठी है
क़श्तियां हैं नहीं पतवार लिए बैठी है
ऐसा लगता है सियासत को देखकर यारो
जैसे विधवा कोई श्रृंगार किए बैठी है



बंद बंगलों में हुकूमत की चमक बैठी है
लाल बत्‍ती के सायरन में धमक बैठी है


हमारे ज़ख्‍मों पे फिर मरहम लगाने के लिए
सियासत हाथों में लेकर के नमक बैठी है

ना तो आंगन में सुबह शाम का फेरा होता
ना आसमां में किसी चांद का डेरा होता
अगर सूरज पे सियासत की हुकूमत चलती
तो सिर्फ़ उनके घरों में ही उजेरा होता





DR. SUNIL JOGI

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Sunday, August 5, 2007

दोस्‍ती



इधर उधर की बात करके, रंग बदलते हैं
जब अलग कर नहीं पाते, तो हाथ मलते हैं
कहने सुनने में किसी के, कभी नहीं आना
दुनियां वाले हमारी, दोस्‍ती से जलते हैं

दुश्‍मनी रखते हैं जो, वो कसाई होते हैं
दोस्‍त इस दुनियां में, गाढी कमाई होते हैं
ख़ुशी हो, ग़म हो, हर क़दम पे साथ चलते हैं
दोस्‍त पिछले जनम के, भाई भाई होते हैं

सांस की नुमाइश में, जि‍न्‍दगी नहीं मिलती
आजकल चरागों से, रौशनी नहीं मिलती
स्‍वार्थ के अंधेरे में, डूब गये हैं रिश्‍ते
कृष्‍ण औ सुदामा सी, दोस्‍ती नहीं मिलती

बिछड. जाएगी मगर, छूट नहीं सकती है
और कच्‍चे घडे सी, फूट नहीं सकती है
ज़मीं पे ज़लज़ला आये, या सितारे टूटें
दोस्‍ती अपनी कभी, टूट नहीं सकती है

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Thursday, August 2, 2007

बरखा की डोली



बरखा की डोली लिए, आए मेघ कहार
धरती माँ की गोद में, रिमझिम पड़ी फुहार

टॉर्च दिखाती दामिनी, लिए नगाड़े संग
पानी का मांजा लिए, बादल बने पतंग

बरखा रानी हो गई, सज धज कर तैयार
रंग-बिरंगी छतरियों का आया त्यौहार

छम छम छम करने लगे, यों बूँदों के साज़
ज्यों आँगन में नाचते, हों बिरजू महाराज

बदरी से मिलने चले, बादल भरे उमंग
श्वेत रंग काला हुआ, शक्ल हुई बदरंग

दुखिया छप्पर के तले, भीगा सारी रात
तन करके मेहमान-सी, घर आई बरसात

सोम रंग से भी बड़ा, पानी तेरा रंग
एक घूँट से धूप की, उतर गई सब भंग

सिंहासन बादल चढ़े, धूप हुई कंगाल
उछले-उछले गाँव में, घूम रहे हैं ताल

पिया बसे परदेस में, गोरी है बेचैन
सावन भादों बन गए, दो कजरारे नैन

छप्पर ने मुँह धो लिए, चमक उठी खपरैल
इक बारिश में धुल गया, मन का सारा मैल

सदियों से जाती रही, मैं सागर के पास
नदिया बोली मेघ से, आज बुझी है प्यास

पावस आई कट गई, फिर पतझड़ की नाक
सब पेड़ों ने पहन ली, हरी-हरी पोशाक

बच्चे बारिश देखकर, गए खुशी से फूल
'रेनी डे' -में हो गए, बंद सभी स्कूल

सुनकर बादल बूँद के, टूट गए संबंध
नदी तोड़ कर चल पड़ी, तट के सब अनुबंध

-सुनील जोगी

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Wednesday, August 1, 2007

रिश्‍ता


मेरी नजरों को वो शख्‍स फरिश्‍ता लगता है
कभी कभी मुझको मेरा ही हिस्‍सा लगता है
दूर अगर जाउं तो बेचैनी सी होती है
मेरा उसका जनम जनम का रिश्‍ता लगता है

पावन हों तो माथे का, चन्‍दन बन जाते हैं
राधा कान्‍हा हों तो, वन्‍दावन बन जाते हैं
एक साथ रह करके भी, दूरी सी लगती है
कभी कभी ये रिश्‍ते भी, बन्‍धन बन जाते हैं

अपने मतलब से दुनियां में, रिश्‍ता नाता है
हाथ मिलाते हैं सब, दिल को कौन मिलाता है
काम निकल जाए तो, कोई याद नहीं करता
बा‍रिश थम जाए तो, छाता कौन लगाता है

उसका अंदाज जमाने से जुदा लगता है
वो मुझे मेरी मोहब्‍बत का खुदा लगता है
मेरा उसका कोई रिश्‍ता तो नहीं है लेकिन
कोई कुछ उसको कहे, मुझको बुरा लगता है




Thursday, June 7, 2007

जोगी जी वाह

डॉक्टर सुनील जोगी की शायरी



जो हाथ जोड.कर के, मन्दिरों में खडे. हैं
संतों के, महंतों के, जो चरणों में पडे. हैं
नादान हैं शायद उन्हें, मालूम नहीं है
मंदिर की मूर्तियों से तो, मां बाप बडे. हैं ।

हर एक शख्स उसे, अपनी दुआ देता है
जहां भी जाता है, मेला सा लगा लेता है
न जाने कौन सा, कुदरत ने हुनर बख्शा है
वो दुश्मनों से भी, तारीफ करा लेता है ।


कुछ में राम बसा है तो, कुछ में रहमान धड.कता है
गीता औ कुरआन, बाइबिल, का सम्मान धड.कता है
धर्म, प्रांत से अलग भले हैं, कह दो दुनियां वालों से
सौ करोड. के दिल में अब भी,हिन्दुस्तान धड.कता है।

किसी को दिन के उजाले में गर सताओगे
तो अन्धेरे में कभी नींद नहीं आयेगी
बेवजह घर के चरागों को बुझाने वालो
तुम्हारे घर में रौशनी न कभी आयेगी ।

कितनी भी तपती धरती हो, बादल प्यास बुझा देता है
एक फूल भी खिल जाये तो,गुलशन को महका देता है
हल्की सी आवाज मिटा देती है, सारे सन्नाटे को
इक छोटा सा दीप अकेला, तम को दूर भगा देता है।

कल जो इक बीज था, वो आज शजर लगता है
बहुत मुश्किल था जो, आसां वो सफर लगता है
मेरे घर फूल हैं, खुशबू है, चांदनी भी है
ये बुजुर्गों की दुआओं का असर लगता है ।

मुझे हास्पिटल में गुलाब आ रहे हैं
सुबह शाम नर्सों के ख्वाब आ रहे हैं
जिन्हें खत लिखे थे जवानी में मैंने
जवानी में उनके जवाब आ रहे हैं ।

किसी गीता से ना क़ुरआं से अदा होती है
न बादशाहों की दौलत से अता होती है
रहमतें सिर्फ बरसती हैं उन्हीं लोगों पर
जिनके दामन में बुज़ुर्गों की दुआ होती है ।

आपका दर्द मिटाने का हुनर रखते हैं
जेब खाली है खज़ाने का हुनर रखते हैं
अपनी आंखों में भले आंसुओं का सागर हो
मगर जहां को हसांने का हुनर रखते हैं ।

हर इक मूरत ज़रूरत भर का पत्थर ढूंढ. लेती है
किसी को नींद आ जाये तो बिस्तर ढूंढ. लेती है
अगर हो हौसला दिल में तो मंज़िल मिल ही जाती है
नदी खुद अपने क़दमों से समन्दर ढूंढ. लेती है ।



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