हिन्दी
वो देश क्या जिसकी, कोई ज़ुबान नहीं है
सर तो तना हुआ है, स्वाभिमान नहीं है
भाषा तो आप चाहे जो भी, बोल लें लेकिन
हिन्दी के बिना देश की, पहचान नहीं है
भाषा को धड.कनों में जिए, जा रहा हूं मैं
हर शब्द को अमृत सा, पिए जा रहा हूं मैं
अंग्रेज़ी जानता हूं मगर, गर्व है मुझे
हिन्दी में काम काज, किए जा रहा हूं मैं
सागर से मिल के भी, नदी प्यासी बनी रही
हंसने के बाद भी तो, उदासी बनी रही
अंग्रेजी को लोगों ने, पटरानी बना दिया
हिन्दी हमारे देश में, दासी बनी रही
सोच लिया है भारत मां की, बिन्दी को अपनाएंगे
तमिल, तेलगू, उर्दू, उडिया, सिन्धी को अपनाएंगे
अपने देश की सब भाषाएं, हमको जान से प्यारी हैं
लेकिन सबसे पहले मिलकर, हिन्दी को अपनाएंगे
Friday, August 31, 2007
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3 comments:
लहर नई है अब सागर में
रोमांच नया हर एक पहर में
पहुँचाएंगे घर घर में
दुनिया के हर गली शहर में
देना है हिन्दी को नई पहचान
जो भी पढ़े यही कहे
भारत देश महान भारत देश महान ।
NishikantWorld
सुनील जी,बहुत बढिया व सही विचार प्रेषित किए हैं।बधाई।
हिंदी को समृद्ध करने के लिए बहुत आभार ,
ये हमारी सरकारों की नक्कारी और शायद हमारे लोकतंत्र की मजबूरी है जो अभी तक हिंदी को पूर्ण रूप से भारत की राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं मिल सका है .
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