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Sunday, August 5, 2007

दोस्‍ती



इधर उधर की बात करके, रंग बदलते हैं
जब अलग कर नहीं पाते, तो हाथ मलते हैं
कहने सुनने में किसी के, कभी नहीं आना
दुनियां वाले हमारी, दोस्‍ती से जलते हैं

दुश्‍मनी रखते हैं जो, वो कसाई होते हैं
दोस्‍त इस दुनियां में, गाढी कमाई होते हैं
ख़ुशी हो, ग़म हो, हर क़दम पे साथ चलते हैं
दोस्‍त पिछले जनम के, भाई भाई होते हैं

सांस की नुमाइश में, जि‍न्‍दगी नहीं मिलती
आजकल चरागों से, रौशनी नहीं मिलती
स्‍वार्थ के अंधेरे में, डूब गये हैं रिश्‍ते
कृष्‍ण औ सुदामा सी, दोस्‍ती नहीं मिलती

बिछड. जाएगी मगर, छूट नहीं सकती है
और कच्‍चे घडे सी, फूट नहीं सकती है
ज़मीं पे ज़लज़ला आये, या सितारे टूटें
दोस्‍ती अपनी कभी, टूट नहीं सकती है

DR. SUNIL JOGIDELHI, INDIACONTACT ON - O9811005255http://www.kavisuniljogi.com/http://www.hasyakavisammelan.com/kavisuniljogi@gmail.com

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