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Tuesday, September 11, 2007

नदी

हर इक मूरत ज़रूरत भर का, पत्‍थर ढूंढ लेती है
कि जैसे नींद अपने आप, बिस्‍तर ढूंढ लेती है
अगर हो हौसला दिल में, तो मंजिल मिल ही जाती है
नदी ख़ुद अपने क़दमों से, समन्‍दर ढूंढ लेती है


तू नदी है तो अलग अपना, रास्‍ता रखना
न किसी राह के, पत्‍थर से वास्‍ता रखना
पास जाएगी तो खुद, उसमें डूब जाएगी
अगर मिले भी समन्‍दर, तो फासला रखना

वो जिनके दम से जहां में, तेरी खुदाई है
उन्‍हीं लोगों के लबों से, ये सदा आई है
समन्‍दर तो बना दिए, मगर बता मौला
तूने सहरा में नदी, क्‍यूं नहीं बनाई है

हौसलों को रात दिन, दिखला रही है देखिए
परबतों से लड. रही, बल खा रही है देखिए
किसकी हिम्‍मत है जो, उसको रोक लेगा राह में
इक नदी सागर से मिलने जा रही है देखिए


DR. SUNIL JOGI DELHI, INDIA
CONTACT ON- O9811005255
www.kavisuniljogi.com
www.hasyakavisammelan.com
kavisuniljogi@gmail.com

3 comments:

Udan Tashtari said...

बढ़िया है, सुनील भाई.

Sumit Pratap Singh said...

goooodddd...

Unknown said...

nic poem