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Thursday, September 27, 2007

मोहब्‍बत

कभी हमको हंसाती है, कभी हमको रूलाती है
जिन्‍हें जीना नहीं आता, उन्‍हें जीना सिखाती है,
खुदा के नाम पर लिक्‍खी, ये दीवानों की पाती है
मोहब्‍बत की नहीं जाती, मोहब्‍बत खुद हो जाती है ।

खुदा के सामने दिल से इबादत कौन करता है
तिरंगा हाथ में लेकर शहादत कौन करता है
ये कसमें और वादे चार दिन में टूट जाते हैं
वो लैला और मजनूं सी मोहब्‍बत कौन करता है ।

जीतने में क्‍या मिलेगा, जो मजा है हार में
जिन्‍दगी का फलसफा है, प्‍यार के व्‍यापार में
हम तो तन्‍हा थे, हमारा नाम लेवा भी न था
इस मोहब्‍बत से हुआ चर्चा सरे बाजार में ।

सदा मिलने की चाहत की, जुदा होना नहीं मांगा
हमें इंसान प्‍यारे हैं, खुदा होना नहीं मांगा
हमेशा मंदिरो मस्जिद में, मांगा है मोहब्‍बत को
कभी चांदी नही मांगी, कभी सोना नहीं मांगा ।

DR. SUNIL JOGIDELHI, INDIA
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Monday, September 17, 2007

सरकार

विकास योजना तैयार किए बैठे हैं
सब‍की उम्‍मीद तार-तार किए बैठे हैं
हमने सरकारी महक़मों में जाके देखा है
जुगुनू सूरज को गिरफ्तार किए बैठे हैं


भाव सेवा का दिखाने में लगे हैं प्‍यारे
बिना पानी के नहाने में लगे हैं प्‍यारे
जिनसे उम्‍मीद थी खुशियों की सुबह लाएंगे
अपनी सरकार बचाने में लगे हैं प्‍यारे

लगता है घर के आंगन को दीवार खा गई
दरिया चढा तो नाव को पतवार खा गई
सारी विकास योजनाएं फाइलों में हैं
जनता के सारे ख्‍वाब तो सरकार खा गई

ख़ुशबू की खिलाफत का फैसला तो देखिए
आएगा किसी रोज़, जलजला तो देखिए
सूरज को भी गुमराह कर रहे हैं दोस्‍तो
सरकारी चराग़ों का हौसला तो देखिए

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Tuesday, September 11, 2007

नदी

हर इक मूरत ज़रूरत भर का, पत्‍थर ढूंढ लेती है
कि जैसे नींद अपने आप, बिस्‍तर ढूंढ लेती है
अगर हो हौसला दिल में, तो मंजिल मिल ही जाती है
नदी ख़ुद अपने क़दमों से, समन्‍दर ढूंढ लेती है


तू नदी है तो अलग अपना, रास्‍ता रखना
न किसी राह के, पत्‍थर से वास्‍ता रखना
पास जाएगी तो खुद, उसमें डूब जाएगी
अगर मिले भी समन्‍दर, तो फासला रखना

वो जिनके दम से जहां में, तेरी खुदाई है
उन्‍हीं लोगों के लबों से, ये सदा आई है
समन्‍दर तो बना दिए, मगर बता मौला
तूने सहरा में नदी, क्‍यूं नहीं बनाई है

हौसलों को रात दिन, दिखला रही है देखिए
परबतों से लड. रही, बल खा रही है देखिए
किसकी हिम्‍मत है जो, उसको रोक लेगा राह में
इक नदी सागर से मिलने जा रही है देखिए


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Sunday, September 9, 2007

फूल

महकती हुई जिन्‍दगी बांटते हैं
ज़माने में सबको ख़ुशी बांटते हैं
भले उनकी किस्‍मत में कांटे लिखे हों
मगर फूल हमको हंसी बांटते हैं

सोने चांदी को खजानों में रखा जाता है
बूढे लोगों को दालानों में रखा जाता है
रंग होते हैं बस, खुशबू नहीं होती जिनमें
उन्‍हीं फूलों को गुलदानों में रखा जाता है

ग़मों के बीच भी जो लोग मुस्‍कराते हैं
वही इंसानियत का हौसला बढाते हैं
लोग कांटों को तो छूने से भी कतराते हैं
फूल होते हैं तो पहलू में रखे जाते हैं

चाहत के बदले नफ़रत का, नश्‍तर लेकर बैठे हैं
पीने का पानी मांगा तो, सागर लेकर बैठे हैं
लाख भलाई कर लो, लेकिन लोग बुराई करते हैं
हमने जिनको फूल दिए, वो पत्‍थर लेकर बैठे हैं

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Wednesday, September 5, 2007

गुरू

मिट जाएगा सब अंधियारा, शिक्षा का गुणगान करो
बांटे से बढ.ता है ये तो, सदा ज्ञान का दान करो
इस धरती पर गुरूवार ही हमको, परम सत्‍य बतलाता है
अर्जुन जैसा बनना है तो, गुरूओं का सम्‍मान करो

सदा ज्ञान के पृष्‍ठ काले मिलेंगे
जेहन में मकडि.यों के जाले मिलेंगे
भटकते रहोगे अंधेरों में हरदम
गुरूवार के बिना ना उजाले मिलेंगे


ज्ञान के पांव का गोखुरू हो गये
भीड. देखी तो फ़ौरन शुरू हो गये
आ गये चैनलों पर चमकने लगे
चन्‍द चेले जुटाकर गुरू हो गये


ट्यूशन पढा-पढा के मालामाल हो गये
औ ज्ञान के सागर के सूखे ताल हो गये
किसका अंगूठा मांग लें, हैं इस फिराक़ में
पहले के गुरू अब गुरू घंटाल हो गये

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Monday, September 3, 2007

बेटियां

मेंहदी, कुमकुम, रोली का, त्‍योहार नहीं होता
रक्षाबन्‍धन के चन्‍दन का, प्‍यार नहीं होता
उसका आंगन एकदम, सूना सूना रहता है
जिसके घर में बेटी का, अवतार नहीं होता


सूने दिन भी दोस्‍तो, त्‍योहार बनते हैं
फूल भी हंसकर, गले का हार बनते हैं
टूटने लगते हैं सारे बोझ से रिश्‍ते
बेटियां होती हैं तो, परिवार बनते हैं


झूले पड.ने पर मौसम, सावन हो जाता है
एक डोर से रिश्‍ते का, बन्‍धन हो जाता है
में‍हदी के रंग, पायल, कंगन, सजते रहते हैं
बेटी हो तो आंगन वृन्‍दावन हो जाता है

जैसे संत पुरूष को पावन कुटिया देता है
गंगा जल धारण करने को लुटिया देता है
जिस पर लक्ष्‍मी, दुर्गा, सरस्‍वती की किरपा हो
उसके घर में उपर वाला बिटिया देता है

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Sunday, September 2, 2007

शायरी

शायरी

जिन्‍दगी उसकी है यारो, जिसके दिल में प्‍यार है
‍रूप उसका है कि जिसके, पास में श्रृंगार है
फूल में खुशबू ना हो तो, बोलिए किस काम का
दिल अगर बेकार है तो, शायरी बेकार है

हादसे इंसान के संग, मसखरी करने लगे
लफ़्ज़ क़ागज़ पर उतर, जादूगरी करने लगे
क़ामयाबी जिसने पाई, उनके घर तो बस गये
जिनके दिल टूटे वो आशिक़, शायरी करने लगे

हर खुशी आएगी पहले, ग़म उठाना सीख लो
रौशनी पानी है तो फिर, घर जलाना सीख लो
लोग मुझसे पूछते हैं, शायरी कैसे करूं
मैं ये कहता हूं किसी से, दिल लगाना सीख लो


मोहब्‍बत के अंजाम से डर रहे हैं
निगाहों में अपनी लहू भर रहे हैं
मेरी प्रेमिका ले उडा और कोई
इक हम हैं कि बस शायरी कर रहे हैं

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