कभी हमको हंसाती है, कभी हमको रूलाती है
जिन्हें जीना नहीं आता, उन्हें जीना सिखाती है,
खुदा के नाम पर लिक्खी, ये दीवानों की पाती है
मोहब्बत की नहीं जाती, मोहब्बत खुद हो जाती है ।
खुदा के सामने दिल से इबादत कौन करता है
तिरंगा हाथ में लेकर शहादत कौन करता है
ये कसमें और वादे चार दिन में टूट जाते हैं
वो लैला और मजनूं सी मोहब्बत कौन करता है ।
जीतने में क्या मिलेगा, जो मजा है हार में
जिन्दगी का फलसफा है, प्यार के व्यापार में
हम तो तन्हा थे, हमारा नाम लेवा भी न था
इस मोहब्बत से हुआ चर्चा सरे बाजार में ।
सदा मिलने की चाहत की, जुदा होना नहीं मांगा
हमें इंसान प्यारे हैं, खुदा होना नहीं मांगा
हमेशा मंदिरो मस्जिद में, मांगा है मोहब्बत को
कभी चांदी नही मांगी, कभी सोना नहीं मांगा ।
DR. SUNIL JOGIDELHI, INDIA
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Thursday, September 27, 2007
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10 comments:
जोगी जी वाह, अपनी बातों को बड़ी ही ख़ूबसूरती के साथ प्रस्तूत किया है, सच बड़ा हीं कड़वा होता है, आपने सच कहा है इसलिए आपको धन्यवाद .
काफी दिनों बाद प्रेम को परिभाषित करती एक बेहद संजीदा रचना पढ़ने को मिली… सच कहे तो अद्भुत!!!
जोगी जी वाह जोगी जी.....आपको बहुत दिनो से सुनते आये है..अच्छा लगता है...मोहब्बत.का खूबसूरत बयान.....
बहुत बेहतरीन!! वाह वाह!!!
वाह जोगी जी एसी खूबसूरत रचना जो बरबस ही दिल को छू लेती है...
Thank you Jogi ji,bhaut sunder
very good poem
हम तो आपके कायल हो गये।
jogi g aap ki kavita maa kamal hai.....yey apney likhee nai apko utree hai is kainat sey-----jaisey quran utree thee through paigambar hazrat mohammad saab ko.
appko pranam ki aap jariya baney ki duniya ko y beshkeemtee poetry naseeb ho
navinpant
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