मिट जाएगा सब अंधियारा, शिक्षा का गुणगान करो
बांटे से बढ.ता है ये तो, सदा ज्ञान का दान करो
इस धरती पर गुरूवार ही हमको, परम सत्य बतलाता है
अर्जुन जैसा बनना है तो, गुरूओं का सम्मान करो
सदा ज्ञान के पृष्ठ काले मिलेंगे
जेहन में मकडि.यों के जाले मिलेंगे
भटकते रहोगे अंधेरों में हरदम
गुरूवार के बिना ना उजाले मिलेंगे
ज्ञान के पांव का गोखुरू हो गये
भीड. देखी तो फ़ौरन शुरू हो गये
आ गये चैनलों पर चमकने लगे
चन्द चेले जुटाकर गुरू हो गये
ट्यूशन पढा-पढा के मालामाल हो गये
औ ज्ञान के सागर के सूखे ताल हो गये
किसका अंगूठा मांग लें, हैं इस फिराक़ में
पहले के गुरू अब गुरू घंटाल हो गये
DR. SUNIL JOGI DELHI, INDIA
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Wednesday, September 5, 2007
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3 comments:
क्या बात है गुरू आप धन्य है एक ही कविता मेम सभी कुछ समा गया...बहुत-बहुत बधाई एक कामयाब और खूबसुरत कविता पर...
सुनीता(शानू)
वाह भाई वाह , आपने तो कमाल करने की ही ठानी हुई है. आपको सुनना तो और भी शानदार होता है. देखने से मजा आता है और पढने पर भी आनन्द आता है. तो क्यों न कहे वाह जोगीजी वाह
आज कल अर्जुन और द्रोण नही होते बस एकलव्य होते है. जरा यहन भी देखिये
http://qatraqatra.blogspot.com/2007/09/blog-post_06.html
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