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Monday, September 3, 2007

बेटियां

मेंहदी, कुमकुम, रोली का, त्‍योहार नहीं होता
रक्षाबन्‍धन के चन्‍दन का, प्‍यार नहीं होता
उसका आंगन एकदम, सूना सूना रहता है
जिसके घर में बेटी का, अवतार नहीं होता


सूने दिन भी दोस्‍तो, त्‍योहार बनते हैं
फूल भी हंसकर, गले का हार बनते हैं
टूटने लगते हैं सारे बोझ से रिश्‍ते
बेटियां होती हैं तो, परिवार बनते हैं


झूले पड.ने पर मौसम, सावन हो जाता है
एक डोर से रिश्‍ते का, बन्‍धन हो जाता है
में‍हदी के रंग, पायल, कंगन, सजते रहते हैं
बेटी हो तो आंगन वृन्‍दावन हो जाता है

जैसे संत पुरूष को पावन कुटिया देता है
गंगा जल धारण करने को लुटिया देता है
जिस पर लक्ष्‍मी, दुर्गा, सरस्‍वती की किरपा हो
उसके घर में उपर वाला बिटिया देता है

DR. SUNIL JOGI DELHI, INDIA
CONTACT ON - O9811005255
www.kavisuniljogi.com
www.hasyakavisammelan.com
kavisuniljogi@gmail.com

1 comment:

Udan Tashtari said...

बेटी महात्म पर खूबसूरत अभिव्यक्ति. काश, बेटी विरोधी समाज में आपका स्वर पहुँचें. बहुत सुन्दर.